गाजर घास: भारत में एक खतरनाक खरपतवार
गाजर घास, जिसे वैज्ञानिक रूप से Parthenium hysterophorus कहा जाता है, एक अत्यंत आक्रामक और खतरनाक खरपतवार है। यह न केवल फसलों को नुकसान पहुंचाती है, बल्कि इंसानों और जानवरों की सेहत के लिए भी बड़ा खतरा बन चुकी है। इसे आमतौर पर कांग्रेस घास के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि यह 1950 के दशक में भारत में तब फैली, जब कांग्रेस की सरकार थी।
इतिहास और प्रवेश
गाजर घास का भारत में आगमन 1950 के दशक में हुआ। ऐसा माना जाता है कि यह अमेरिका या कनाडा से आयात किए गए गेहूं के साथ अनजाने में भारत पहुंची थी। पहली बार इसे 1951 में पुणे के पास एक कूड़े के ढेर पर प्रोफेसर परांजपे ने पहचाना था। इसके बाद 1955 के आसपास यह तेजी से फैलना शुरू हो गई।
कैसे फैलती है यह घास?
गाजर घास बहुत तेज़ी से फैलने वाला पौधा है। यह एक साल में कई बार बीज पैदा करता है और हवा, पानी या जानवरों के ज़रिए अपने बीजों को दूर-दराज तक फैला सकता है। एक रिपोर्ट के अनुसार, यह खरपतवार अब भारत के लगभग 35 मिलियन हेक्टेयर भूमि पर फैल चुकी है।
पहचान कैसे करें?
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यह एक शाकीय (herbaceous) पौधा है।
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लंबाई 0.5 से 1 मीटर तक होती है।
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इसमें छोटे-छोटे सफेद रंग के फूल होते हैं।
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पत्ते गहरे हरे रंग के और गाजर के पत्तों जैसे कटे-फटे होते हैं।
नुकसान
1. मानव स्वास्थ्य पर प्रभाव:
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त्वचा में खुजली, चकत्ते और एलर्जी
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सांस लेने में तकलीफ और अस्थमा जैसे लक्षण
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आंखों में जलन
2. पशुओं पर प्रभाव:
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गाजर घास खाने से दूध देने वाले जानवरों की सेहत पर असर
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उनके दूध में कड़वाहट आ सकती है
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त्वचा रोग और पाचन संबंधी समस्याएं
3. खेती को नुकसान:
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यह फसलों की जगह ले लेती है और मिट्टी से पोषक तत्व खींच लेती है
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गेहूं, धान, गन्ना आदि की उपज में भारी गिरावट ला सकती है
नियंत्रण के उपाय
गाजर घास के नियंत्रण के लिए कई उपाय अपनाए जा सकते हैं:
रासायनिक उपाय:
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घास खत्म करने वाले हर्बीसाइड्स जैसे Glyphosate या 2,4-D का छिड़काव
जैविक उपाय:
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Zygogramma bicolorata नामक एक कीट का इस्तेमाल, जो गाजर घास की पत्तियों को खा जाता है
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जैविक खाद के रूप में इस्तेमाल करने की प्रक्रिया
अन्य उपाय:
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समय पर घास को जड़ से उखाड़ना
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सामुदायिक स्तर पर अभियान चलाकर इसे नियंत्रित करना